चहुंँओर खुशी छाई,बज रही शहनाई,
परिजन नाच रहे, खुशी का है अवसर।
विवाह के बाद जब, विदाई की आई घड़ी,
सखियों के आँसू गिरे,अंँखियों से झर-झर।
पूछ रही रोती-रोती, बेटी क्यों पराई होती,
बहनों से मिलती है, गले से लिपट कर।
सबसे नज़र बचा,’रवि’ रोए भाई -पिता,
कलेजे के टुकड़े यूँ ,चल दी क्यों छोड़ कर।
जैनेन्द्र प्रसाद रवि’
म.वि. बख्तियारपुर, पटना
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