हर घर-घर की मान है बेटी।
माथे का स्वाभिमान है बेटी।
जीवन के अरमान है बेटी।
वसुंधरा पर गुमान है बेटी।
जिसके घर न बेटी जन्मी,
बेटी खातिर तरस रहा।
बेटी है जिसके घर मानो,
हीरा- मोती बरस रहा।
चौखट की मुस्कान है बेटी।
रीत-प्रीत की खान है बेटी।
हर घर-घर की मान है बेटी।
माथे का स्वाभिमान है बेटी।
दर्जा सदा बराबर जब,
अपनी बेटी को देंगे हम।
पड़ेगा न पछताना हमको,
चैन का सांस भरेंगे हम।
दुनिया में ही महान है बेटी।
समझो एक वरदान है बेटी।
हर घर-घर की मान है बेटी।
माथे का स्वाभिमान है बेटी।
शब्द- मणिकांत मणि, पालीगंज,पटना
manimirror.blogspot.com
0 Likes