ममता बड़ी प्यारी है,
समता बड़ी न्यारी है,
बेटी ही तो बनती माँ,
माँ की परछाईं है।
मानवता की जान है,
देश का अभिमान है,
नील गगन से जाके,
आँख भी मिलाई है।
करुणा की मूर्ति है वो,
माँ की प्रतिमूर्ति है वो,
माया रूपी जग में वो,
लक्ष्मी बन आई है।
कोयलिया की तान है,
शारदे की संतान है,
तुलसी है आँगन की,
करती भलाई है।
देव कांत मिश्र ‘दिव्य’ मध्य विद्यालय धवलपुरा, सुलतानगंज भागलपुर, बिहार
0 Likes