बरसों बाद फिर आई रुत ये बहार के,
शुभ घड़ी आई, दिन बीते इंतजार के।
फसलें तैयार हुईं देखो मन मोहते,
कटने किसान हाथ अब बाट जो होते।
पक गए गेहूं पौधे पीले-पीले बाल हैं,
अब तो कृषक बृंद होंगे खुशहाल हैं।
खेतों से नई फसलें आईं खलिहान में,
खुश हो के झूमें लोग नए परिधान में।
सिर पर पाग बाँध नर-नारी नाचते,
बच्चे, बूढ़े गा रहे हैं ताल और थाप दे।
मजदूर ढ़ो रहे हैं अनाजों की बोरियाँ,
माता-पिता के संग उमंग में छोरियां।
मन की मुरादें सारी पूरी होगी कुड़ी की,
आंखों में चमक दिखे आज दादी बूढ़ी की।
ईश ने आशीष दिया मजदूरी- पसीने की,
होगी अरमान पूरी अब खुशी से जीने की।
श्रम को उपहार देने आज आई बैशाखी है,
किसानों में उमंगों की खूबसूरत झांकी है।
जैनेन्द्र प्रसाद रवि’
म.वि. बख्तियारपुर, पटना