बोल बम कहने लगा।
आ गया सावन महीना, भाव में बहने लगा।
त्याग ऑंचल का सहारा,बोल बम कहने लगा।।
कौन लाया है यहाॅं पर, गुप्त है इस चित्र में।
भाव जैसा लग रहा है,लिप्त बालक मित्र में।।
बोल सकता है नहीं पर,सादगी मुसकान है,
हाथ भोले तक बढ़ाकर,क्या गजब करने लगा।
त्याग ऑंचल का सहारा,बोल बम कहने लगा।।
खुल रहा है बालपन में,द्वार पहली बार जो।
धर्ममाला में जुड़ा है,एक पतला तार जो।।
बोध होकर सब किये हैं,धर्म का अपमान ही…,
आज बालक के किए पर,हर्ष जग करने लगा।
त्याग ऑंचल का सहारा,बोल बम कहने लगा।।
क्या भला इसके हृदय में,कर गए प्रभु बास हैं।
स्वार्थ से ऊपर उठा यह,बाल प्रभु का दास हैं।।
जन्म पाकर कर्म सुंदर,भर रहा सुवास शुभ,
छोड़ ऑंचल आप आया,बोल बम कहने लगा।
त्याग ऑंचल का सहारा,बोल बम कहने लगा।।
धर्म पर चर्चा अधिक है,अर्थ बादल छा रहे।
कौन अच्छा है यहाॅं पर,तर्क बाहर आ रहे।।
लोग पैसे के लिए हर,पाप को तैयार है,
बाल-श्रम कानून तजकर,कैद शिशु करने लगा।
त्याग ऑंचल का सहारा,बोल बम कहने लगा।।
रामपाल प्रसाद सिंह ‘अनजान’
प्रधानाध्यापक,
मध्य विद्यालय दर्वेभदौर
प्रखंड पंडारक पटना बिहार
