भविष्य बनने से पहले ,
इतिहास न बनो तुम ।
कर्त्तव्य के आलोक को ,
विस्मृत न करो तुम ।
समझो न ऐसा कार्य कोई ,
जिसे तुम कर सकते नही ।
आरम्भ कर पीछे में यूँ ,
कदम कोई रख समते नही ।
सत्प्रयोजनों के स्वावलंबन से ,
तुम सदा बढ़ते रहो ।
अरिवृन्द में भी सामना का ,
साहस सदा रखते रहो ।
स्वकर्म में निरत रहो तुम ,
सदा सख्य मान के ।
पहुँचोगे एक दिन मंजिल पर ,
यह सदा ही जान के ।
रचयिता :- अमरनाथ त्रिवेदी
प्रधानाध्यापक
उत्क्रमित उच्च विद्यालय बैंगरा
प्रखंड – बंदरा ( मुज़फ़्फ़रपुर )
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