भाषा नहीं ये भारत माता यह है-
हिन्दी आन, बान, शान है,
भारत का अभिमान है।
वो पत्र में लिखा प्यार है,
बोली में छुपा मधुर मिठास है।
कवियों के कविताओं का आधार है,
भाषा नहीं, यह भारत माता है।
देवरूपी संस्कृत का अंश यह,
हमारी अस्मिता की परिभाषा है।
देवनागरी का सार यह,
भाषा नहीं, यह भारत माता है।
पांच स्तंभों पर खड़ा यह,
हमारे धरकर की ताल है।
हमारे अस्तित्व की पहचान सदा,
इतिहास की गाथा है।
भाषा नहीं, यह भारत माता है।
‘अ’ से अनपढ़ से शुरू होकर,
‘ज्ञ’ से ज्ञानी तक ले जाती है।
अशिक्षा से शिक्षा का मार्ग,
हम सबको यह सिखाती है।
यूं ही नहीं यह भारत माता बन जाती है।
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