जीवन भर संघर्ष था, पर न रुका विचार।
हर पीड़ित के हित रहा, निज मन का सुविचार॥
शोषण की दीवार को, तोड़ा सत्य-विचार।
सत्ता-मंचों से कहा,”बस चाहूँ उच्च विचार॥”
काया थकी, मन न थमा, लेखनी रही स्वदेश।
न्याय-धर्म के युद्ध में, रहा वही संदेश॥
बुद्ध मार्ग को चुन लिया, अंतर्मन की पीर।
वेद-पुराणों से अलग, ढूँढा शांति का तीर॥
“समानता ही धर्म है, बाँट न पाए ध्यान।
भेदभाव को त्याग दो, यही सच्चा ज्ञान॥”
शेष नहीं कुछ और था, लक्ष्य हुआ साकार।
भारत माँ की गोद में, विश्रांत महामानव आकार॥
जीवन भर संघर्ष था, पर न रुका विचार।
हर पीड़ित के हित रहा,निज मन का उद्गार।।
सुरेश कुमार गौरव,
‘प्रधानाध्यापक’
उ. म. वि. रसलपुर, फतुहा, पटना (बिहार)
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