मकर संक्रांति- गिरीन्द्र मोहन झा

Girindra Mohan Jha

बच्चों ! जानो आज मकर संक्रांति है,

सूर्यदेव की मकर राशि में विश्रांति है,

मकर राशि में जाते ही उनका तेज बढ़ता है,

आज से ही मार्त्तण्ड सतत प्रखर होता जाता है,

आज कुलदेवता, सूर्यदेव को तुम प्रणाम करो,

मातु, पिता, गुरुजनों का नित तुम सम्मान करो,

दिवाकर सदृश तुम भी स्वयं को सदा प्रखर करो,

हर कार्यों में उपयोगी हो, निज पुरुषार्थ प्रकट करो,

आज से छः माह सूर्य को उत्तरायण जानो,

तत्पश्चात् भास्कर को तुम दक्षिणायण जानो,

बच्चों ! आज तुम पतंग उड़ाना,

ऊँचे अम्बर में तुम उसे लहराना,

पतंग के उड़ान से बहुत कुछ सीखना,

पतंग तेरे कर से न कटे, थोड़ा देखना,

मन-मस्तिष्क के पतंग को भी उड़ाना,

उसे अंतरिक्ष की भी अवश्य सैर कराना,

किन्तु पतंग सदृश भूमि से जुड़े रहना,

कितना भी जीवन-पथ पर तुम आगे बढ़ो,

निज कुल आचार मत बदलना, न छोड़ना,

अपनी कुल परम्परा जड़ है, याद रखना,

जड़ बिना ऊँचाई का मोल नहीं, ध्यान रखना,

कितना ऊपर उठ जाओ, मातृभूमि हित अवश्य कुछ करना,

सदा सभी कर्त्तव्यों-दायित्वों का पालन करते आगे बढ़ना,

कितना भी उड़ान भरो, पर यथार्थ-वर्तमान से डटकर जुड़े रहना,

बच्चों! स्वयं को सब कार्यों के लिए ऐसे उपयोगी बनाना,

कि जहाँ जाओ अमिट चिह्न छोड़ आओ, ध्यान रखना,

जीवन-पर्यन्त सदा सीखते रहना, लक्ष्य-प्राप्ति हेतु प्रयास करना,

अपने क्षेत्र, अपनी विधा में तुम नित निरन्तर अभ्यास करना,

बच्चों ! तुम उस्ताद कम, सदा अच्छा शागिर्द बनना,

ठोस उपलब्धियों हेतु तुम कुछ भी कर गुजरना।

गिरीन्द्र मोहन झा
+२ शिक्षक,
+२ भागीरथ उच्च विद्यालय, चैनपुर-पड़री, सहरसा (बिहार)

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