मैं हूं एक मजदूर ,
समस्याएं भरपूर ,
लड़ता हूं रोज पर ,
हार नहीं मानता।
खुद रहे फटेहाल,
रखें सब को खुशहाल,
मालिक का कभी ,
कहा नहीं टालता।
महल अटारी बना ,
फैक्टरी या कारखाना ,
मजदूर ही बनाते ,
कौन नहीं जानता ।
पीठ पर बोझा लिए ,
शुद्ध कर्म भाव लिए ,
मन खुश रख आगे ,
बढ़ने की ठानता।
डॉ मनीष कुमार शशि
+2HS, Simri
बिहार
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