मनहरण – एस.के.पूनम

S K punam

जाग रहा जग बंधू,
ढूंढ़े मुझे प्रिय संधू,
संसार के रखवाले,आए मेरे द्वार हैं।

धरे कई रुप सदा,
पहचाने यदाकदा,
युगों से मोहनी छवि,मुझे तो स्वीकार है।

द्वापर में कृष्ण रूप
द्वारका में गये छूप,
सूत्रधार प्रेम लीला को किये साकार हैं।

त्रेतायुग अवतार,
लोकलाज का विस्तार,
कौशल्यानन्दन दिव्य रूप अंगीकार हैं।

एस.के.पूनम(पटना)

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