सजी-धजी है वादियां,रंग-बिरंगे फूलों से,
गुलाबों की पंखुड़ियां,बिखेरी सुगंध है।
देव उतरे बागों में,शीश झुकाए खड़े हैं,
भींगी-भींगी अँखियाँ,खुशियाँ अगाध है।
हरी-भरी है घाटियां,हरी-हरी घास दिखी,
ओस पर प्रभा पड़ी,रंगो का प्रबंध है।
लाल-लाल महीधर,कानन में खुशियां है,
घरा पर भ्रम नहीं, हर कोई मुग्ध है।
एस.के.पूनम(स.शि.)फुलवारी शरीफ,पटना।
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