विधा: मनहरण घनाक्षरी
राष्ट्र के हैं दिव्य लाल,
सौम्य तन उच्च भाल,
ज्ञान बुद्धि प्रेम के वे,
निर्मल स्वरूप हैं।
बाल्य नाम नरेन्द्र है,
कर्मयोगी नृपेन्द्र है,
देशभक्ति धर्म हेतु,
सच में अनूप हैं।
कर्म जिनका धाम है,
विवेकानंद नाम है,
दया प्रेम अध्यात्म के,
सुख सौम्य कूप हैं।
युवागण महान हैं,
भारत के जवान हैं,
पुण्य पथ पर चलें,
कर्म सच्ची धूप हैं।
देव कांत मिश्र ‘दिव्य’ मध्य विद्यालय धवलपुरा, सुलतानगंज, भागलपुर, बिहार
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