मनहरण घनाक्षरी:-“भोर”(खण्ड-1)
भोर ने बुलाया जब,रवि दौड़ा आया तब,
मिटा अंधकार सब,बुलाने में हित है।
खाट छोड़ दिया तब,उजियारा हुआ जब,
नयनों में ज्योत अब,सुबह की जीत है।
पत्तियाँ चमकी तब,शबनम गिरी जब,
किरणों से बंघी अब,प्रकृति से प्रीत है।
आया पवन का झोंका,लाया सुमनों का गुच्छा,
प्रभु पग पुष्प बर्षा, आराध्य ही मीत है।
एस.के.पूनम(स.शि.)फुलवारी शरीफ,पटना।
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