और कोई काम नहीं, मिलता आराम नहीं,
थक हार कर थोड़ा, सूर्य अलसाया है।
चलता हूँ जिस पथ, देखता हूँ लथपथ,
थलचर-नभचर,घाम से नहाया है।
सागर उबल रहा, पत्थर पिघल रहा,
शायद तेवर देख, सभी घबराया है।
दिखती न हरियाली, कहीं नहीं पते डाली,
सूख गए पेड़-पौधे,मिलती न छाया है।
जैनेन्द्र प्रसाद रवि’
म.वि. बख्तियारपुर पटना
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