🙏कृष्णाय नमः🙏
विधा:-रूपघनाक्षरी
(मन कहे वाह वाह)
हरी-भरी घास पर,
ओश करे जगमग,
प्रकृति की छटा देख,मन कहे वाह-वाह।
रवि कहे धरनी से,
होना है निडर सखि,
धूप-छाँह होते-होते,कटते हैं आह-वाह।
डाल-डाल फूल खिले,
किंचित सुलभ मिले,
प्रात-काल अर्पण की,सुरभित होती चाह।
हिया में छिपी है व्यथा,
पिया की विछोह कथा,
जीऊँ कैसे गुमसुम,मिलतीं न कोई राह।
एस.के.पूनम(स.शि.)पटना
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