विद्या:- मनहरण घनाक्षरी छंद
अक्षत चंदन संग
पूजन की थाल लिए,
आते रोज नर-नारी, मां के दरबार में।
अखियाँ तरस रही,
कब से बरस रही,
दर्शन को लालायित, खड़े इंतजार में।
करूणा हैं बरसाती
भक्ति की वशीभूत हो,
हो जातीं द्रवित जल्दी, करुण पुकार में।
शरण में जब आते,
नास्तिक भी तर जाते,
होती है ताकत बड़ी श्रद्धा ऐतबार में।
जैनेन्द्र प्रसाद रवि’
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