द्वारिका में मिलने को,
सुदामा जी आए जब,
चरण पखारें श्याम, पानी ले परात में।
मित्र कहो समाचार,
पूछा जब बार-बार,
अपनी गरीबी नहीं, कहा मुलाकात में।
वस्त्र फटे ठांव-ठांव
पनही के बिना पांव,
लाचारी समझे देख, दीनों के हालात में।
मोहन का बाल सखा,
मित्रता का फ़ल चखा,
झोपड़ी महल बन-गई बात बात में।
जैनेन्द्र प्रसाद रवि’
म.वि. बख्तियारपुर, पटना
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