मुंह का निवाला
गरीबों को दुनिया में,
सिर पर छत नहीं,
हमेशा अभाव में ही कटता जीवन है।
थक जाती आँखें खोज,
मुँह का निवाला रोज,
शायद हीं भरपेट मिलता भोजन है।
सेठ साहूकार यहां,
करते छप्पन भोग,
भूखों के नसीब लिखा, फेंके ये जूठन हैं।
लाखों टन ये अनाज,
होते हैं नित्य बर्बाद,
कितना जरूरी भाई, सोचों अन्न कण है।
जैनेन्द्र प्रसाद रवि’
म.वि. बख्तियारपुर पटना
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