मुक्तक – देव कांत मिश्र ‘दिव्य’

Devkant

हमारे देश की हिंदी, सुशोभित सौम्य-सी लगती।
यही है भाल की बिंदी, बड़े ही गर्व से सजती।।
मधुर रस भाव अनुरंजित, बनी हर कंठ की भाषा,
बसे मन भावना ऐसी, रहे हिंदी सदा हँसती।।

सरल मन भाव से कहता, बढ़ाओ प्यार हिंदी से।
ललित भाषा हमें देती, रसीला सार हिंदी से।।
बने यह देश की भाषा, जगे जब चेतना सबमें,
हृदय में प्रेरणा भरकर, मिलाओ तार हिंदी से।।

देव कांत मिश्र ‘दिव्य’ मध्य विद्यालय धवलपुरा, सुलतानगंज, भागलपुर, बिहार

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