आइए मेरे गाँव में,
अजी बैठिए छांव में,
प्रकृति के नजारे को,
समीप से देखिए।
समृद्ध खलिहान है,
मेहनती किसान हैं,
ताजे-ताजे उपज का,
आंनद तो लीजिए।
कोलाहल से दूर है,
सुकून भरपूर है,
शीतल ठंडी हवा का,
सेवन तो कीजिए।
सबसे अच्छी बात है,
दादी नानी का साथ है,
मीठे ताल-तलैया का,
अजी जल पीजिए।।
लोग यहाँ के अच्छे हैं,
दिल के बड़े सच्चे हैं,
झूठ और फरेब से,
होते कोसों दूर हैं।
सुबह उठ जाते हैं,
भ्रमण कर आते हैं,
अंखियों में इनके तो,
नूर भरपूर है।
सबको आशियाना है,
नहीं कोई बेगाना है,
अपने ही आमोद में,
रहते ये चूर हैं।
सत्यता इन्हें भाता है,
दिखावा नहीं आता है,
अपनी धरती माँ पे,
करते गुरुर हैं।।
कुमकुम कुमारी “काव्याकृति”
शिक्षिका
मध्य विद्यालय बाँक,जमालपुर