मेरे दोस्त – संजय कुमार

ये कैसे दोस्त हैं मेरे
मुझे बूढ़ा होने नहीं देते
सभी दूर हैं मुझसे
कोई नहीं है आस-पास।
पर सभी जुड़े हैं एक दूसरे से
मोतियों की माला की तरह पास- पास ।

कभी दुःखी होता हूँ
अकेले होने पर
पर अकेले होने नहीं देते
रोना चाहता हूँ
पर रोने नहीं देते
मेरे दोस्त
मुझे बूढ़ा होने नहीं देते ।

अपने तो समझते नहीं
बिछड़ने पर रोते हैं बच्चों की तरह
समझते हैं एक दूसरे को
समझाते हैं समझदारों की तरह
कहते हैं उस समय समझा नहीं
इसलिए बात करते हैं लड़कपन की
दिल की बात बेफिक्री से
कहते हैं
बेवजह की वह मुलाकात
रात में सोने नहीं देते
मेरे दोस्त मुझे बूढ़ा होने नहीं देते।

मिलने पर आज भी
गुदगुदाते हैं बच्चों की तरह
संग-संग मुस्कुराते हैं
वेबजह की बात पर भी
वे ठहाका लगाते हैं
आँसुओं से पलकें भींगने नहीं देते
पलकों से आँसू गिरने नहीं देते
कहते हैं बहुत कीमती है
मोती से भी अधिक
मेरे दोस्त मुझे बूढ़ा होने नहीं देते।

बचना यदि चाहूँ भी इनसे
अनजान अगर बनकर
करोड़ों की भीड़ में तलाश लेते हैं मुझे
अब नियति ऐसी हो गई है
हर पल इनके साथ होना चाहता हूँ
भीड़ में नहीं खोना चाहता हूँ
बेशकीमती यादें संजोना चाहता हूँ
अपने दोस्तों के संग जीना चाहता हूँ,
अपने दोस्तों के संग जीना चाहता हूँ ।।

संजय कुमार
जिला शिक्षा पदाधिकारी
अररिया

 

 

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