मैं हूँ हिंदी,
कहने के लिए,
आपकी बिंदी,
सर का ताज हूँ,
राज-काज का साधन,
भाषा की अभिव्यक्ति हूँ,
पतंगों की डोर संग,
भावनाओं की उड़ान हूँ,
देश की आन-बान-शान,
एकता की बुनियाद हूँ,
अक्षर का कराती हूँ ज्ञान,
ईश्वर ने जो दिया है वरदान,
शब्दों की तीखी धार हूँ,
शायद मैं ही आधार हूँ?
आत्मा एवं एकता का सूत्रधार,
देश की संस्कृति का प्रचारक हूँ,
तत्सम तद्भव का पाठ पढ़ाती,
वर्णमाला का साज सजाती,
बापू ने जिसे किया वरण,
महादेवी वर्मा ने दिया शरण,
जो सबके दिलों को जोड़ती,
सबके अरमानों को घोलती,
फिर भी एक बात,
जो मेरे मन को है कचोटती,
जिससे है देश का मान,
जो है राष्ट्र की पहचान,
फिर क्यों हो रहा उसका अपमान,
मिट रही मेरी मिली पहचान,
मेरे अस्तित्व पर ही लग रहा ग्रहण,
जिसे संविधान ने है अपनाया,
फिर दूसरी भाषा ने,
लोगों के दिलों में जगह कैसे बनाया?
अब क्या होगा मेरे भाई?
क्या फिर मिल सकेगी?
मेरी पुरानी खोई पहचान,
क्या मिल पाएँगे?
खोए सभी ओहदे तमाम।
विवेक कुमार
भोला सिंह उच्च माध्यमिक विद्यालय,
पुरुषोत्तमपुर
कुढ़नी, मुजफ्फरपुर