मैं हूँ माहवारी!
मैं हूँ ईश्वर का वरदान ।
मैं बढ़ाती हूँ नारी का मान।।
संतान सुख का मैं राह बनाती।
माँ बनने का सौभाग्य दिलाती।।
मैं न हूॅं अभिशाप कोई, न कोई बड़ी बिमारी हूँ।
मैं माहवारी हूं।।
मत हँसो मुझ-पर कि मैं तुम्हें अशुद्ध करती हूॅं।
देकर तुम्हें दर्द झोली खुशियों से भरती हूँ।।
मत छोड़ो मुझे अकेलेपन में।
मत छोड़ो मुझे तड़पने को।।
मैं तुम्हारे स्नेहा स्पर्श की, सचमुच मानो अधिकारी हूँ।
मैं माहवारी हूॅं।।
मांस के लोथड़े को स्वयं सींचकर।
दर्द की आग में उसे पकाकर।।
भ्रूण से इंसान बनाती हूं।
मैं सबका वंश बढ़ाती हूं।।
मुझे न समझो अछूत कभी मैं रूढ़िवाद पर भारी हूॅं।
हाँ मैं माहवारी हूॅं।।
मुझे देखकर शर्म न करना,
मैं जब आऊँ स्वागत करना।
सेनेटरी पैड का कर प्रयोग फिर,
उचित रूप से निपटान भी करना।।
स्वच्छता और पौष्टिक भोजन लेने को करवाती मैं तैयारी हूँ।
मैं माहवारी हूँ।।
फल,फूल, दूध भोजन में लाना,
आयरन की गोली तुम खाना।।
इस दौरान जब दर्द बढ़े तो,
अस्पताल जाने से नहीं घबराना।
जागरूकता के लिए मैं अपनी सबकुछ तुम सब पर वारी हूॅं।
हाँ मैं माहवारी हूँ।।
रचनाकार
मनु कुमारी विशिष्ट शिक्षिका मध्य विद्यालय सुरीगाँव बायसी पूर्णियाँ
