मनहरण घनाक्षरी छंद
रोज दिन पल-पल,
मौसम बदल रहा,
सेंकने को मन करे, बैठ खिली धूप को।
जो रहेंगे सावधान,
नहीं होंगे परेशान,
निकलें परख कर, मौसम के रूप को।
रहें जो संभल कर,
नहीं खाते तल कर,
अपने से दूर सदा, रखें रोग कूप को।
‘रवि’ छोड़ सारे काम,
ईष्ट को सुबह-शाम,
भजन नमन करें, जगत के भूप को।
जैनेन्द्र प्रसाद रवि’
म.वि. बख्तियारपुर, पटना
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