योग – गिरींद्र मोहन झा

Girindra Mohan Jha

योग

योग का अर्थ है जुड़ना,
एकाग्रता, निरन्तर अभ्यास।
कर्म-कुशलता, समत्व,
दुःखसंयोग-वियोग का प्रयास।।
भक्तियोग, ज्ञानयोग, राजयोग,
कर्मयोग इनके चार प्रकार।
योग का चरम व अंतिम उद्देश्य है,
परमात्मा से हो एकाकार।।
यम, नियम, आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार,
धारणा, ध्यान, समाधि योग के अष्ट-अंग।
प्रातः काल जगकर कुछ काल जब हो आसन-प्राणायाम,
सुदृढ़ होते अंग-प्रत्यंग।।
यौगिक मुद्राओं का भी है,
भारतीय योग-पद्धति में विशेष स्थान।
मुद्रा में पंचतत्वों की प्रधानता,
आसन में रक्त-संचरण है प्रधान।।
प्राणायाम में प्राणवायु यानि आक्सीजन का है मुख्य स्थान।
प्रातः अथवा सायं जब कुछ समय हम करते हैं ध्यान।।
बढती है एकाग्रता,
मन-मस्तिष्क पूर्णत: होता शांत,
प्रातः काल कुछ समय जब हो योगाभ्यास।
बढ़ती है क्षमता, ऊर्जा, हर ओर होता विकास।।
योगाभ्यास से पूर्व जल का पान,
पश्चात् हो मूत्र का त्याग।
सारे कीटाणु शरीर से बाहर होते,
ऊर्जा की जलती आग।।
योग का माहात्म्य है विशाल,
लौकिक-अलौकिक हो कल्याण।
निस्संदेह योग है भारतवर्ष का विश्व को एक महान वरदान।।

….गिरीन्द्र मोहन झा, +२ भागीरथ उच्च विद्यालय, चैनपुर-पड़री, सहरसा

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