बरसाने की गलियों में, आज खिला है रंग,
बृज की माटी महक रही, प्रेम भरा है संग।
राधा संग गोविंद खेले, स्नेह भरा है फाग,
गुलाल-गुलाबी उड़ चले, छेड़ें प्रेम का राग।
मथुरा नगरी झूम रही, नाचे वृंदावन,
कृष्ण की बंसी गूँजे, प्रेम करें अर्पण।
राधा के रस में भीगे, सखियाँ करें सिंगार,
नेह सुधा की धार बहे, नभ तक जाए पुकार।
फागुन आया प्रेम भरा, रास रचे आकुल,
कान्हा के संग रंग गई, राधा मन की व्याकुल।
सावन-भादों क्या करें, हर दिन होरी प्यारी।
प्रेम रंग में डूब गई, बृज की दुनिया सारी।
गोप ग्वाल सब गा उठे, माधव-माधव गान,
रंग बरसें प्रेम के, भूलें मन अभिमान।
आज सजी है प्रेम पिचकारी, नेह भरी मुस्कान,
सुरेश कहे, इस रसधारा में, जीवन हो रसगान!
सुरेश कुमार गौरव,
‘प्रधानाध्यापक’
उ. म. वि. रसलपुर, फतुहा, पटना (बिहार)
वह प्रेम है ही नहीं जिसका उद्देश्य शरीर को पाना है। हर युग में प्रेम का मतलब राधा-कृष्ण बन जाना है।। माता-पिता एवं गुरुजनों को भुलाकर प्रेम नहीं होता। संस्कृति तथा संस्कार को ठुकराकर प्रेम नहीं होता।। तन की तमन्ना नहीं;मन से ईश्वरीय रिश्ता निभाना है। हर युग में प्रेम…
होली आया होली का त्योहार, छाया सबपे खुमार। लेकर रंग गुलाल, देखो आए नंदलाल।। संग लेकर ग्वाल-बाल, पहुंचे राधा के द्वार। करने मस्ती अपार, सुंदर है यह त्योहार।। लेकर हरी गुलाबी रंग, राधा आई गोपियों संग। करने रंगों की बौछार, आज कान्हा आए द्वार।। बजने लगे ढोल-मंजार, उसपे थिरके नर-नार।…
खिल उठते चहुंओर फूल, सुंदर महक पलाश के प्रकृति ने फगुई फाल्गुन को,खूब लाया तलाश के। प्रेम यौवन का मधुमास, यह फाल्गुन ही बतलाती हवा में वासंतिक महक से, सरसों खूब लहराती। इस ऋतु में ही प्रकृति से मिला है,अनूठा वरदान कली फूल खिल यौवन सा,सुंदर नाम दिया प्रदान। कोंपल…