“रक्त की रेखा”
हर माह वो सहती है, चुपचाप सी पीड़ा।
न पेट कहे कुछ, न पीठ की धारा धीमा।
कमर झुकती जाती है, मन भी भारी होता।
फिर भी मुस्कान रख, हर दिन का दीप जलाता।
थकावट का साया, सिर में दर्द का शोर।
फिर भी वो चलती है, जीवन ले कर जोर।।
उलझन, मितली, सूजन के बादल।
हर बार छू लेती है हिम्मत का आंचल।।
वो रचती है सृष्टि, वो लाती है जन्म।
उसके त्याग से ही बना हर वंशधर्म।।
फिर क्यों अपवित्र कह, उसे दूर किया जाए?
जिससे जीवन मिला, उसी से डर दिखाया जाए?
रसोई से निकाली, पूजा से हटाई।
मंदिर के द्वारों पर भी, क्यों बंधन लगाई?
क्या सच में पवित्रता इतनी संकरी है?
या हमारी सोच ही अब भी अधूरी है?
जो रक्त बहाए, वो शर्मिंदा क्यों हो?
जो जननी बने, वो अपमानित क्यों हो?
आओ आज बदलें दृष्टिकोण की लकीर,
सम्मान दें उस रक्त की हर एक बूंद को ग़ैर।
उसकी चुप्पी को आवाज़ दें हम,
उसके कष्टों में थोड़ा साथ दें हम।।
न शर्म हो, न दूरी रहे,
बस समझदारी से काम ले हम ।।
रचनाकार
अरुण कुमार तिवारी
उत्क्रमित मध्य विद्यालय शीतला पट्टी पश्चिम मीनापुर मुजफ्फरपुर
