बोल अरे क ख या ग घ,घोल मिठापन डाल रही है।
बैठ गई जब सम्मुख माॅं तब,बालक ज्ञान प्रक्षाल रही है।।
जीवन में सुविचार प्रवेशित,बालक में अब ढाल रही है।
माॅं सुविचारित हो जग में तब,स्वर्ग जमीं पर पाल रही है।।
बाल स्वभाव लुभावन पाकर,माॅं हर बात न टार रही है।
खेल रहा पढ़ता वह बालक,माॅं उसको पुचकार रही है।।
देख रहे नभ से छवियाॅं सुख,देव सभी दिल वार रहे हैं।
राम यहाॅं अरु कृष्ण यहाॅं सब,उत्सव मान निहार रहे हैं।
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रामपाल प्रसाद सिंह ‘अनजान’
पूर्व प्रधानाध्यापक मध्य विद्यालय दरवेभदौर
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