सर्दी- कहमुकरी- राम किशोर पाठक 

सर्दी – कहमुकरी स्पर्श सदा कंपित है करती। रोम-रोम में सिहरन भरती।। जैसे वह हमसे बेदर्दी। क्या सखि? साजन! न सखी! सर्दी।।०१।। कभी डरूँ तो छुप मैं जाऊँ। दिन-भर जमकर…

भोलेनाथ हमारे – राम किशोर पाठक

भोलेनाथ हमारे । तेरे भक्त पुकारे ।। आएँ हैं सब द्वारे । तू ही कष्ट उबारे।। आओ हे त्रिपुरारी। नैना नीर हमारी।। हे भोले अघहारी। शोभा सुंदर न्यारी।। नैनों को…

जाति-वर्ण लोकतंत्र पर भारी – राम किशोर पाठक 

है लोकतंत्र की महिमा न्यारी। चलती जिससे संविधान प्यारी।। सबने बदली अब दुनियादारी। लूट रहे धन कहकर सरकारी।। लेकर सारे धन-बल की आरी। कुर्सी पाने की है तैयारी।। जनता बनती…

रामायण – राम किशोर पाठक 

आओ चिंतन कर लें थोड़ा, जो खुद गढ़ते हैं। गाथा सुंदर रामायण की, हम-सब पढ़ते हैं।। नारायण होकर जब नर सा, विपदा झेला है। फिर क्यों रोते रहते हम-सब, दुख…

यूँ ही लम्हें बीत  जाएँगे – अमरनाथ त्रिवेदी

यूँ ही लम्हें बीत  जाएँगे , न हम रहेंगे न तुम रहोगे  फिर अपनी बात   कहाँ  और किसको कहोगे ? यह अंतहीन  सिलसिला  चलता ही जाएगा । क्या यह कभी  कहीं रुक भी…