भोर का आगा़ज कर,
शोर करे नभचर,
जाग गए नर -नारी,पहुँचे हैं खलिहान ।
कुदाल है कंधे पर,
टोकरी है माथे पर,
कीचड़ में सने पैर,काश्तकार पहचान।
भूमिपुत्र अन्नदाता,
मोहताज दाना-दाना ,
सजल नयन झुके,जैसे रहते सुजान।
तेज धूप सह कर,
शीत ओस ओढ़ कर,
भूखे-प्यासे रह कर,कहलाते हैं किसान।
एस.के.पूनम(स.शि.)फुलवारी शरीफ
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