पर्वतों के पीछे छुपे,
बादलों के ओट खुले,
मंडराते चहूंओर,सलिल से भरपूर।
लेकर तपीश चले,
लुकाछिपी रवि खेले,
घेर लेते घनघोर,अहंकार करे चूर।
काले-काले मेघ छाये,
उलझे हैं लट जैसे,
शीतल पवन संग,डुपट्टा उड़ाई हूर।
अंबुद की बूंदें गिरी,
चातक की प्यास बुझी,
हरी-हरी घास उगी,गहरी जिसकी मूर।
एस.के.पूनम(पटना)
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