वह जो
सुरों का साज था,
वह जो
सुरों की आत्मा थी,
जहां बसती थीं भावनाएं,
हंसता,रोता था हर कोई,
वह अमन का समुंदर सा,
वह लता है,
वह लता है।
सुर,लय, ताल,
हृदय की धुन पर वह
संगम था,
जो सुर मात्र नहीं,
शाश्वत सा कुछ,
वह दिव्यता के आलोक से पूरित,
वह लता है,
वह लता है।
लता का जाना,
मगर असम्भव है यह मान पाना
कि वह अब नहीं है
हमारे बीच,
वह हस्ती है जो अब भी है साबुत,
दिल के अमर्त्य पटल पर,
जो अब भी गुनगुनाता है,
जिसकी अगुआई में,
जिंदगी के नगमे,
जीवन से भरे गीत,
वह लता है,
वह लता है।
वह जो एक नाम है,
स्वयं को ही महसूस कर सकने का,
हम सबके लिए ही
नेह बरसाती छाँव का,
जो बस है
प्यार का अमर पैगाम,
हम सभी के लिए,
जो बस है,
मानवता के सुंदरतम गीत सा,
वह लता है,
वह लता है।
-गिरिधर कुमार,शिक्षक,उत्क्रमित मध्य विद्यालय जियामारी, अमदाबाद, कटिहार