लाख दुआएँ देती है
भूल अगर हो जाती हमसे,
नौ दो ग्यारह भी हो जाते।
दौड़ धूप हम इतना करते,
अंजर-पंजर ढीले पाते।।
चोट हमें लग जाती जब भी,
माँ की ऑंखें भर जाती है।
आठ-आठ ऑंसू वह रोती,
माँ अंक भरे सहलाती है।।
जैसा बोते वैसा पाते,
कहकर हमको सिखलाती है।
उँगली कोई नहीं उठाए,
वह ऊँच- नीच समझाती है।।
एक बनें हम, नेक बनें हम,
गुदड़ी का लाल बनाती है।
एक आँख से सबको देखें,
सीख यही देती जाती है।।
घर का बोझ उठाना तुझको,
कहकर वह गले लगाती है।
मैं अच्छा जब भी करता तो,
वह घी का दीप जलाती है।
कोई शिकवा कर देता तो,
आड़े हाथों वह लेती है।
आँखों का तारा हूॅं उसका,
कह लाख दुआएँ देती है।
रचयिता:- राम किशोर पाठक
प्राथमिक विद्यालय भेड़हरिया इंगलिश, पालीगंज, पटना, बिहार।
संपर्क – 9835232978
