क्या से क्या हो गया,
वक्त यू क्यू बदल गया।
इंसान की पहचान खो गई,
इंसान के व्यवहार से इंसान दहल गया।
न हम रहे न हम,
न तुम रहे न तुम,
“हमारा” शब्द का तो अब मतलब बदल गया।
मैं, मेरा, मुझे तक रिस्ता समिट गया l
न वो प्रेम रहा,
न वो दया l
लूट-खसोट की दुनिया हो गई,
हर रिस्ते का पहचान बदल गया।
क्या पता आगे क्या होगा,
पराए तो पराए,
हर अपना बदल गया।
सिमट गई यादे,
सिमट गए वादे,
दुख-दर्द को समझने वाला एहसास बदल गया।
अब तो औरों की खुशी से गम,
व औरों के गम से खुशी होती है लोगों को।
शायद अब मैं कलयुग का मतलब समझ गया।
दीपा वर्मा
सहायक शिक्षिका
रा.उ.म. विद्यालय
मुजफ्फरपुर, बिहार
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