सबके लिए ऋतुओं की रानी है वर्षा,
पानी जब-जब बरसे तब-तब मन हर्षा।
आसमान में घटाटोप बादल हैं छाएं,
पेड़-पौधे हरीतिमा लिए पंख फैलाए।
पक्षियों के सुरीले कलरव मीठे बोल,
चारों ओर फैला रही हैं मिश्री घोल।
बरखा रानी झमाझम जब खूब बरसे,
हर किसानों के दिल खूब तब हरसे।
वर्षा रानी पानी से खूब कराती मस्ती,
कोई मिटा नहीं सकते इनकी ये हस्ती।
खेल-खलिहानों में खूब रौनक लाएं,
लोगों के तन और मन हर्षित हो जाएं।
हरियाली से परिपूर्ण हो जाती है धरती,
कुछ को छोड़ धरती नहीं रहती है परती।
बरखा रानी देती है खुशहाली के संदेश,
अमीर हो या गरीब, रहता नहीं क्लेश।
बने हम सरस सलिल (पानी) के ऐसा,
मानो टपकती धार और ताल के जैसा।
सिखलाती क्या निर्धन और क्या धनवान,
खुशहाल रहें और गुनते रहें बने धैर्यवान।
खुश हो जाते सब बादल बन खूब बरसती,
खुशहाली के अति मधुरमय संदेश सुनाती।
सबके लिए ऋतुओं की रानी है वर्षा,
पानी जब-जब बरसे तब-तब मन हर्षा।
@सुरेश कुमार गौरव,शिक्षक,पटना (बिहार)
स्वरचित और मौलिक
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