आया था जब मैं यहां पर
एक अजनबी सा बनकर
था अकेला, मायुस बैठा
खूद में ही खूद सिमटकर
न था किसी से परिचित
न था मैं किसी से बेहतर
सपने हैं कुछ अटल जो
थे , लाए यहां खिंचकर
शुरू हुआ जो दौर पढ़ाई का
हम सब ने पढ़ा मन लगाकर
शिक्षक भी देते साथ बहुत ही
ससमय वर्ग – कक्ष में आकर
थी जूनून सब में अजब निराली
करना है कुछ, आगे निकलकर
बन गया प्रतिस्पर्धा का माहौल
हम सभी सहपाठियों में अक्सर
तीन साल की अवधि होई है फूर्र
मन हो रहा है मायूस ये सोचकर
साथ छुट रहा है अब दोस्तों का
फिर कब मिलेंगे यहां से निकलकर
विद्यालय ये तेरा है ,एहसान मुझपर
तूने किया है धन्य शिक्षादान देकर
मैं रखुगा सदैव आत्मसम्मान तेरी
ये है मेरा प्रण मेरे प्राण से बढ़कर
वो दौर भी तो कुछ और था
जहां से शुरू की थी सफर
प्यारे विद्यालय तेरी ये जुदाई
नागंवार गुजर रही है हमपर
ना चाहते हुए भी वो दिन आ गया
जब जाना ही पड़ेगा सब छोड़कर
खुश रहना ऐ मेरे स्कूल वासियों
चलता हूं अब मैं अलविदा कहकर
एम० एस० हुसैन “कैमूरी”
शिक्षक सह युवा कवि
उत्क्र० मध्य विद्यालय छोटका
कटरा मोहनियां कैमूर बिहार
