जय -जय अम्बे,जय जगदम्बे,
सुन लो अरज हमार।
सकल जगत की तू हो माता ,
विनती सुनो हमार।
तू हो माता ब्रह्म स्वरूपा,
अविगत,अलख, अनादि अनूपा।
सत्य सनातन तू हो अम्बे,
शीश नवायें सुर नर भूपा।
अविचल अविनाशी,
अज आनन्द रासी,
मैं हूं मां तेरी हीं दासी।
मेरे अज्ञान तिमिर का नाश करो
यही विनती बारम्बार।
विनती सुनो हमार….
दैहिक दैविक भौतिक तापें,
जला रही हैं हम मानव को।
दुराचार चहुंओर है फैला,
बढ़ा रहा तामस प्रवृति को।
कलयुग में बेटी की इज्जत,
देखो कैसे लूट रहा है।
क्यों तुम बनी हो पत्थर की मूरत,
आओ देखो बिटियों की सूरत।
सरे आम वह नोच रहे हैं,
बिगड़ेगा नहीं कुछ सोच रहे हैं।
तुम तो हो मां असुर संघारिणी,
भयहारिणी ,भवभामिनी माता।
हर इक बेटी में आकर फिर से,
असुरों का करो संघार!
विनती सुनो हमार….
तुम हो पापनाशिनी माता,
मधु कैटभ संघारणी माता।
तू हो महाविलासिनी माता,
तू हीं शमशानविहारीनी माता।
मूल प्रकृति का रूप तुम्हीं हो,
मनवांछित फल दायिनी माता।
सकल सुरासुर मुनिगनवंदिनी,
जगत जननी शुभ वरदायिनी।
तू हीं चंद्रघंटा,तू कालरात्रि,
तू स्कंदमाता तू हीं कात्यायनी।
तू महागौरी,तू हीं चणि्डका,
तू हीं शैलपुत्री तू, हीं आदिशक्ति
भक्तों की पीड़ा को देखो,
अब तो करो उबार।
विनती सुनो हमार।
स्वरचित:-
मनु रमण “चेतना”
पूर्णियां बिहार।