मेरी माँ ‘
मैं तो अलबेला, थोरा सा भोला,
मासूम, नादान, हटेला ।
किस्मत का मारा रहूंगा अकेला
खौटा सिक्का सा,पर हूँ तो तेरा
मेरी माँ ।
खता कोई मेरी एक ना होगी।
हजारों ऐब मुझमे होंगे।
हुनर से मेरा दरकिनार होगा।
दोस्त, राहगीर, मुशाफीर
तभी तो कोई मेरा साथ ना होगा।
मेरी माँ ।
खफ़ा सायेद मुझसे पूरी दुनिया थी।
मुझ जैसे जरूरतमंद पर नाराज थी।
दिल, धरकन, जुबां खमोस थी।
क्या कुछ भी ना खास मुझमे था?
मेरी माँ ।
दुर एकदिन मुझे, तुझे करना था।
छोरकर तन्हा, मुझे तुझे जाना था।
साथ कोई कितना देता मेरा।
हर वक़्त, हर पल, हर लम्हा
मेरे संग जिना दुसबार था ।
मेरी माँ ।
अब जो घर छोर जाऊँगा ।
लौटकर और नहीं आऊंगा।
ये दुनिया मुझे समझा नहीं ।
तभी तो तेरे घर पर मेरा पनाह नहीं ।
मेरी माँ ।
सायेद ऐसी दुनिया खोज पाऊंग।
जहा हर चहेरे पर सच्चा प्यार देख पाऊंग।
मेरी माँ ।
। प्रदीप ।
प्रदीप कुमार भट्टाचार्य

