शर्माना क्या घबराना क्या?

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शर्माना क्या घबराना क्या?
ये लाल दाग नही सृष्टि की जान है!
आरम्भिक जीवन की बसती प्राण है!
वंश विस्तार प्राकृतिक पहचान है!

शर्माना क्या घबराना क्या?
पीड़ा और स्त्री का अमिट नाता है!
अंदर ही अंदर सिमट रह जाता है!
क्या क्या भ्रांतिया नारी पे थोप के!
देखो ये दुनिया कैसे मुस्कुराता है?

जीवन चक्र की शुरुआत है माहवारी!
विज्ञान से समझो,नहीं कोई अछूत बिमारी!
शर्माना क्या घबराना क्या!

मासिक चक्र जब चलता है!
तो पूजा नही,शुभ कार्य नही!
यह छूना नही, यह करना नही!
अशुद्ध चित्त में अनेकों भ्रांतिया समाज में सदियों से पलता है!
शर्माना क्या घबराना क्या!

ये माया कुदरत की है!
जो सदैव चलते रहता है!
शर्माना क्या घबराना क्या!

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Vikash Kumar

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