शिष्टाचार -जैनेन्द्र प्रसाद ‘रवि’

Jainendra

मनहरण घनाक्षरी छंद

सामाजिक रिवाजों से,
कट रहे युवा पीढ़ी,
शिष्टाचार – व्यवहार, दिखते न वाणी में।

सत्य का महल सदा,
टिकता है दुनिया में।
कागज की नाव कभी, चलती न पानी में।

मस्ती में लगाते गोते,
जोश में हैं होश खोते,
कभी लोग कर जाते, गलती नादानी में।

गलत संगत पड़,
कदम बहक जाते,
हो जाती है भूल कभी, चढ़ती जवानी में।

जैनेन्द्र प्रसाद ‘रवि’
म.वि. बख्तियारपुर पटना

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