विद्या:-मनहरण घनाक्षरी
ठंडी-ठंडी हवा चली,
शीत यहाँ खूब पली,
आलाव है जल पड़ी,ठंड में शरण है।
अंशु-अंशु कह पड़ा,
करबद्ध रहा खड़ा,
न जग से छीने ताप,शीत में मरण है।
बीते कई दिन रात,
सूरज से मुलाकात,
प्रसन्न हैं मेरे नाथ,दु:ख का हरण है।
पूरब में फैली लाली,
बीत गई रात काली,
धूप ने ली अंगड़ाई,शीत का भरण है।
एस.के.पूनम(स.शि.)फुलवारी शरीफ़,पटना।
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Again very nice one, poetry comes so natural to you