बहरहाल अर्ध हूँ मैं
मेरे शून्य का कुछ प्रतिशत
मृत्यु के द्वार पर है खड़ा
शेष बाट जोह रहा इसके आमंत्रण की
मेरे भीतर के पल्लवित ‘स्वंय’ ने
आकांक्षा रखी है कृतज्ञता प्रकट करने की
प्राप्त निःशुल्क संपदाओं को
मेरे चारों ओर के कोलाहल का
अंश मात्र भी मुझे
आकृष्ट नहीं करता गतिशीलता त्यागने से
जब मैं स्थिर हो जाऊं शैय्या पर
ज्वार के मोह से पीड़ित हो कर
तुम किसी अनियंत्रित क्षोभ को
न भटकने देना मेरे कोण में
मैं स्वप्न देखती हूँ और पाती हूँ
तुम्हें स्वंय के सिरहाने
अब रोष मात्र भी मेरे भीतर
शायद शेष नहीं
शिल्पी
पीएम श्री मध्य विद्यालय सैनो, जगदीशपुर, भागलपुर
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