जब भी लगे तुम्हें,
विश्वास तुम्हारा डगमगाने लगा है,
लेकर आशा की मशाल,
दशरथ माँझी-सा आना तुम
एक और प्रहार करना तुम,
हर दीवार गिराना तुम
हर दीवार गिराना तुम।
अगर राह में
लड़खड़ाने लगें कदम,
राणा का चेतक बन आना तुम
क्षितिज तक दौड़ जाना तुम,
हर बाधा लाँघ जाना तुम
हर बाधा लाँघ जाना तुम।
जब भी लगे तुम्हें
शत्रु खड़े हैं चारों ओर,
लक्ष्मी की तलवार बन,
शिवा की कटार बन आना तुम
हर वार का उत्तर देना तुम,
हर अन्याय मिटाना तुम
हर अन्याय मिटाना तुम।
जब भी लगे तुम्हें
साँसें थमने लगी हैं,
रक्त जमने लगा है,
अरुणिमा सिन्हा बन आना तुम
आखिरी दम तक बढ़ना तुम,
शिखर तक पहुँचना तुम
गगन नाम कर जाना तुम
गगन नाम कर जाना तुम।
यदि लगे कि धुँध घनी है,
दीपक बन अंधकार हरना तुम,
अंतिम लौ तक जलना तुम,
हर तमस को रोशन कर जाना तुम
हर तमस को रोशन कर जाना तुम।
यदि लगे कि रात गहरी है,
तो स्वयं दैदीप्यमान सूर्य बन
उगने का संकल्प उठाना तुम,
अंधियारे को हराना तुम
अंधियारे को हराना तुम।
अगर दुनिया कहे कायर हो तुम,
तो खुद को वटवृक्ष बनाना तुम,
और उन्हें बताना तुम
बीज जब मिट्टी में समाता है,
तभी महावृक्ष बन पाता है।
तभी महावृक्ष बन पता है।
अगर लगे कि थक चला हूँ मैं,
तो इतिहास के पन्ने पलटना तुम,
शिवाजी, चंद्रशेखर,भगत सिंह-सा
अपनी शक्ति जगाना तुम,
बन महावीर, पर्वत उठाना तुम
बन महावीर, पर्वत उठाना तुम।
जब भी लगे तुम्हें
अन्याय की सीमा पार हुई
फिर अपना विकराल रूप दिखाना तुम,
बन कृष्ण सुदर्शन उठाना तुम
अधर्म का अंत कर देना तुम
अधर्म का अंत कर देना तुम।
अवनीश कुमार
बिहार शिक्षा सेवा (शोध व अध्यापन उपसम्वर्ग)
व्याख्याता
प्राथमिक शिक्षक शिक्षा महाविद्यालय विष्णुपुर, बेगूसराय