श्रम का मोल – संजीव प्रियदर्शी

Sanjiv Priyadarshi

श्रम तो है अनमोल जगत में
महिमा इसकी अतुल-अपार
जिसने मूल पहचाना इसका
कदमों में पाया निखिल संसार

श्रम ईश्वर है श्रम ही पूजा,
है यह जीवन का आधार
श्रम ही मंजिल तक पहुंचाता
होती नहीं जीवन में हार

भू-अंतल से छीन विपुल धन
सिन्धु का फाड़ा है सीना
तोड़ा है मद तूफानों का
सिखाया नग को शीश झुकाना

श्रम से वसुधा हेम उगलती
धार सरिता की थम जाती है
रमा-भारती पराजित होकर
श्रम की दासी बन जाती है

श्रम से गौतम गांधी बनते
है ‘नील’ बढ़ता अंबर में
श्रम का फल है पूजे जाते
कबीर- सूर घर- घर में

श्रम का धन ही सच्चा धन है
यह जीवन- अग बढ़ाता है
मेहनत से जो जी चुराता
वह जीवन भर पछताता है

     <strong>संजीव प्रियदर्शी
 फिलिप उच्च माध्यमिक विद्यालय   
   बरियारपुर, मुंगेर 
               ( मौलिक )
       'नील' - नील आर्मस्ट्रॉन्ग</strong>
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