श्रीकृष्ण – गिरींद्र मोहन झा

Girindra Mohan Jha

श्रीकृष्ण

बचपन से तेरी लीला हुई शुरु, सदा रहा कर्तव्य का ध्यान,
सत्य-धर्म पर चलकर तूने, किया सदा जगत का कल्याण,
मथुरा में ले जन्म, महामानव ! पिता-मातु का किया त्राण,
यमुना नदी से होकर तूने, व्रजभूमि की ओर किया प्रयाण,
गोकुल में खेल खेलकर, दिया ग्रामीणों को आनन्द महान,
राधा संग तूने रास रचाया, दिया श्रेष्ठ अकाम प्रेम का ज्ञान,
हुए तुम तो परम संन्यासी, केशव ! हुए तुम गृहस्थ महान,
सब संबंधों को तूने निभा, रखा सदा ही मर्यादा का ध्यान,
हे योगीराज ! हे पार्थ-सारथी ! हे रणछोड़ महारथी महान,
परम निर्भीक, रहकर अनासक्त किये उच्च कर्म निष्काम,
दुष्टों का तूने किया विनाश, किया सज्जनों का परित्राण,
सदैव धर्म की की स्थापना, किया अधर्म का तूने विनाश,
प्रेम के वश हो सुयोधन छोड़, विदुर के यहाँ किया खान,
कुरुक्षेत्र की समर-भूमि में, गीता का दिया उपदेश महान,
रणभूमि में दुष्टों को हरा, किया उज्जवल समाज निर्माण,
आर्यावर्त को है गर्व सदा, था तुझसा कोई विभूति महान।

गिरीन्द्र मोहन झा

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