नश्वर दुनिया में है धर्म केवल शाश्वत,
लोभ-मोह छोड़कर,
नित्य करें प्रेमदान।
जगत पिता से यहां कुछ भी है छिपा नहीं,
आते जाते रात दिन,
देख रहा दिनमान।
पेट भरने के लिए दाल- रोटी ही चाहिए,
धरती है सेज जैसी,
छत बना आसमान।
वक्त और उम्र नहीं रुकता किसी के लिए,
बहती नदी की भांति
समय है गतिमान।
जैनेन्द्र प्रसाद रवि‘
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