विधाता छंद
(1)
कलम है पास में मेरे,
सदा तैयार लिखने को।
पटल पर खास शब्दों को,
उकेरा है सिखाने को।
निराशा में डगर बदली,
पढ़ाया पाठ जीने का।
मदय को छोड़ जब आओ,
तुम्हें तब सोम पीने का।
(2)
छिपे हैं लोग अरसों से,
उन्हें भयमुक्त भी करता।
छिड़ी है बात लेखक की,
कहानी से व्यथा हरता।
बिके हैंआज प्रतिवेदक,
खबर छापी अमीरों का।
तमाशा देख खुश होता,
दमन करते गरीबों का।
(3)
पढ़ेंगे भाग्यशाली ही,
नहीं कोई कहा ऐसा।
ठहर के यूँ बढा आगे,
गिरा उठके लहर जैसा।
सही है आज भी खेड़ा,
शहर की बात क्यों करते।
लिखेंगे इक कहानी भी,
समीक्षा लोग ही करते।
एस.के.पूनम।
प्रा.वि.बेलदारी टोला,फुलवारी शरीफ,पटना।
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