विधा:-रूपघनाक्षरी
सम्मान पाकर कवि,
पाते हैं हर्षित छवि,
नित्य दिन लेख छपे,ऐसा करे विचार।
आलस्य को त्याग कर,
शनैः शनै अभिसार,
रुका नहीं लेखयंत्र,नित्य करे नवाचार।
दवात में भरे स्याही,
जलमग्न हुई माही,
कहाँ शुरू कहाँ अंत,जीवंत है सदाचार।
पद,गद्य,छंदबद्ध,
कहीं नहीं अवरुद्ध,
छप गई कहानियाँ,सम्मान मिले अपार।
एस.के.पूनम
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