इन सर्दियों में ,गरीबों की रौनक
रसहीन हो जाती है ।
सर्द थपेड़ों से
जीना मुहाल हो जाती है ।
चारों ओर शाम ढलते ही
सन्नाटा पसर जाता है ।
लोगों का लोगों से ,
मिलना – जुलना बिखर जाता है ।
इन सर्दियों में ।
आती है कपड़ों की बारात ,
केवल अमीरों के लिए
जीने का एकमात्र सहारा ,
होता अलाव ; गरीबों के लिए
ओस की टपकन
निशा की एकाग्रता भंग करती है ।
ठंड बहुत अब ,
गरीबों का जीना हराम करती है ।
इन सर्दियों में ।
सुबहो – शाम कपड़ों से ,
लदे होते हैं लोग ।
अपने ही ठौर पर ,
छुपे होते हैं लोग ।
जाने – अनजाने लोग
दरकिनार किए जाते है ।
बेवक्त पुकार
अनसुने किए जाते हैं ।
इन सर्दियों में ।
लंबी बोझिल रातें ,
काटे नही कटती ।
बिना अलाव के ,
ठंड नही हटती ।
कभी सूरज गायब
तो कभी चंदा ।
कभी रोशनी गायब
तो कभी धंधा ।
यह सब होता है
इन सर्दियों में।
रचयिता :-
अमरनाथ त्रिवेदी
प्रधानाध्यापक
उत्क्रमित उच्च विद्यालय बैंगरा
प्रखंड – बंदरा ( मुज़फ़्फ़रपुर)